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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( ६१ ) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मिलकर बड़ी हैं स द भुज से सा० २० और इन नाबरावरों में से हरएक में द व जियादा करदी तो स य और य व मिलकर बड़ी हुईं स द और दब से लेकिन यह साबित होचुका है कि स प्र और प्र व मिलकर बड़ी हैं स य और य व से इसलिये व प्र और प्र स मिलकर और भी जियादा बड़ी हैं व द और दस से फिर चूंकि त्रिभुज का बहि: कोन अपने सामने के अन्तः कोन से बड़ा होता है सा० २६ इसलिये स द य त्रिभुज का ब द स बहि: कोन बड़ा है स य द अन्तः कोन से इसी दलील से प्र व य त्रिभुज का सयद बहि: कोन बड़ा है व प्र स अन्तः कोन से इसलिये व दस कोन और भी ज़ियादा बड़ा है व प्रस कोन से इस वास्ते अगर किसी त्रिभुज की एक भुज के सिरों से आयोपान्त यही साबित करना था टि० इस साध्य में अगर त्रिभुज की भुज के सिरों से सीधी रेखा खींची जाने की कैद हो तो मुमकिन होसक्ता है कि दो सीधी रेखा जो उम्र भुज के किसी और दो बिन्दुयों से खींची जायं त्रिभुज की बाकी दो मुख से बड़ी या उनकी बराबर हों लेकिन दोनों रेखा मिलकर उन भुजों के टूने से हमेशा कम रहेंगी अगर भज जिसके सिरों से रेखा खींची जायं समत्रिबाहु त्रिभुज की भुज हो या ऐसे समद्विबाहु त्रिभुज का बाधार हो कि जिसकी हर भुजा व्याधार से बड़ी हो तो भुज के सिरों से रेखा खीं जाने की क़ैद की कुछ ज़रूरत नहीं है दोनों सीधी रेखा मिलकर खात वह भुज के सिरों से या उस भुज के किसी और दो बिंदुयों से खींची गयी हैं हमेशा समत्रिबाहु त्रिभुज की बाकी भुजों या समद्विबाहु त्रिभुज कौ सुन से छोटी होगी For Private and Personal Use Only
SR No.020605
Book TitleRekhaganit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaram Babu
PublisherAtmaram Babu
Publication Year1900
Total Pages220
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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