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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नान्तर खोंची १-सा०३१ और प्रफ मिलाओ उप. अब चूकि अस बराबर है सय के इसलिये अयस कोन बराबर है यअस कोन के १- सा० ५ ___ चूंकि असय कोन समकोन है इसलिये अयस और यअस कोन मिलकर एक समकोन है (१-सा० ३२) और चूंकि यह दोनों कोन आपस में बराबर हैं इसलिये हर एक दून में से आधा समकोन है इसी तरह सघव और पवस कोनों में से भी हरएक आधा समकोन है इसलिये कुल अयव कोन समकोम है चूंकि जयफ कोन आधा समकोन है और यजफ समकोन है क्योंकि वह बराबर है अपने सामने के यसवअन्तः कोनके (१-सा० २८) इसलिये यफज आधा समकोन है इसलिये जय फ कोन बराबर है यफज कोन के इसलिये जफ भुज बराबर है जय भुज के (१-सा. ६) फिर चूंकि फबद आधा ससकोन है और फब समकोन है क्योंकि वह बराबर है अपने सामने के यसब अंत: कोन (१-सा. २८) इसलिये बफद आधा समकोन है इसलिये फवद कोन बराबर है वफद कोन के इसलिये दफ भुज बराबर हे देव भुज के (१-सा. ६) चूंकि अस बराबर है सस के इसलिये अस पर का बर्ग सय घर के बर्ग के बराबर है For Private and Personal Use Only
SR No.020605
Book TitleRekhaganit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaram Babu
PublisherAtmaram Babu
Publication Year1900
Total Pages220
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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