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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पर पड़े तो बह सौधौ रेखा व्यापम में बराबर होती हैं और अगर दो कोनों को हम एक दूसरे पर इस तरह अपने दिल में रख सकें कि एक का शीर्ष दसरे के शीर्ष पर हो और एक को भुनों की दिशाएं भी दसरे को भुजों की दिशानों पर पड़े तो वह कोन व्यापसमें बराबर होते हैं क्योंकि भुजों की लम्बाई के घटने वालने से जैसा कि हम नवीं परिभाषा में बयान कर चुके है कोन घटता बढ़ता नहीं है अगर दो धरातलों का एक दूसरे पर इस तरह रखे जाना खयाल करें कि एक की मुजों की दिशाएं और लम्बाई दूसरे की भुजों की दिशाओं और लम्बाइयों को पूरा ८क लेवे तो वह धरातल अापसमें वरावर होते हैं टि०३ यह स्वयंमिद्धि रेखागणित सम्बन्धी बराबरी दर्यात करने की कसौटी है और इसमें और अङ्कगणित सम्बन्धी बराबरी के कांटे में बहुत बड़ा फा है रेखागणित सम्बन्धी दोराशि उस सरत में बराबर होती है जब वह एक दूसरी को एक लेवें या एक सकें और दो संख्या उस सरत में बराबर होती है जब उन दोनों में इकाइयों के योग एकसे हों और चंकि उकले दस ने रेखायों, कोनों या धरातलों वगैरह की रापियों की कोई इकाई सकरर नहीं की है इसलिये रेखागणित सम्बन्धी राशि की बराबरी के सबूत में संख्या से काम लेना जायज़ नहीं है (c) कुल अपने टकडे से बड़ा होता है। टि.१- डाकर टामसन ने अपनी उकलेट्स में इस खयं सिद्धि के साथ यह स्वयं सिवि ज़ियादा की है कि कुल अपने सव हिमों के योग के बराबर होता है हम यह स्वयंसिद्धि भी ज़ियादा कर सक्त हैं कि हिस्से का हिस्सा कुल का भी हिस्सा होता है टि०२- नवीं स्वयंसिद्धि माहिरा पाठवों की उलटी है यानी यह कि दो राशि जिन में से एक दूसरी से बड़ी हो एक दूसरी को एक नहीं सक्ती है (१०) दो सोधी रेखा धरातल को नहीं घेर सक्तों टि०१ - इसके यह मानी हैं कि दो सौंधी रेखा जिनमें से एक के कोई दो बिन्दु दसरी के दो बिन्द प्रों पर पड़ें वे एक दूसरी को सरासर कलंगा यहां तक कि बढ़ाई जाने पर भी एके रहेंगी टि० २. सीधी रेखा की खासियत जो हमने स्वसिद्धि १० में बयान को है सौधो रेखा की परिभाषा ही से ज़ाहिरा ट पकती है क्योंकि छगर दो मोधी रेखायों का जगह को घेरना मुमकिन होता तो वे अपने सिरे के बिन्दुओं के दर्मियान एक दूसरी को पूरा नहीं एक सक्ती टि. ३. धरातल के घेरने के लिये कम से कम तीन सीधी रेखात्रों का होना ज़रूर है (१२) सब समकोन आपस में बराबर होते हैं For Private and Personal Use Only
SR No.020605
Book TitleRekhaganit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaram Babu
PublisherAtmaram Babu
Publication Year1900
Total Pages220
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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