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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १४४ ) (१०) ४७ वी माधा की मदद से 1 १ . २ ३ गज की लम्बाई किमतरह दाफ़त कर सकते है विवेचना और पया लोचना किसी दो या जियादा चीजों के मिलाने और उनसे एक नयी चीज़ पैदा करने को पथ्या लोचना कहते हैं मसलन जर्द और नीला रंग मिला कर हम सज्ज रंग पैदा करते हैं अगर सज रंग में से ज़र्द और पीला रंग जुदा २ करदें तो उस अदा करने को विवेचना कहते हैं शाम मानौ विवचना और पया लोचना के वह हैं जो ऊपर क्यान हुए लेकिन खास सानो रेखागणित में यह हैं पया लोचना से बह सुराद है कि हम उन • नियमों और नतीजों से शुरू करें जो अब तक सावित हो चुके हैं यानी जिनका सही और सुमकिन या गलत और नामुमकिन होना मालूम है और अखीर में उनसे एक नया नतीजा निकालें मसलन् प्रमेयोपपाय या वस्तुपपाय साध्यों की मदद से जिनको हम साबित कर चुके हैं या जिनका बनाना जानते है एक नयी साध्य प्रमेयोपपाद्य सावित करें या साध्य वरुप पाय वनावें और विवेचना से यह सुराद है कि किमी नयी माध्य के साक्षित करने या बनाने के लिये हम इस बातको पहले फज करलें कि वह साध्य साबित हो गयी या वनगयी ठार फिर सिलसिलेवार दलीलों की मदद से इमर्ज की हई साध्य से नये नतीजे निकालें और देखें कि यह नतीजे उन नतीजों में से किसी के मुताभिक हैं या नहीं जो अब तक नावित हो चुके हैं और इस तरह अपनी फज़ की हुई माध्य का नही और सुमकिन या गलत और नामुमकिन होना या पात करें उलम ने कुल माध्य पालोचना के जरिये से साबित की हैं या बनायी है लेकिन विज चना का जिस नहीं किया है जिसकी मदद से पुराने जमाने के रेखागणितज्ञान बहुतमी प्रमेयोमाय गौर वस्तरपाय साध्य हाफत की हैं चंकि विवेचना का तरीका रेखागणित की साध्यों का मुक्त या अमल दाफले करने के लिये पड़ा सुफीद और कारग्रामद है इसलिये हम उसके कायदे और मिनाल नीचे लिखते हैं विवेचना से किसी प्रमेयोपपाढा साध्य का मुबूत दा फ़त करने का कायदा (१) फर्ज करलो कि जो नाधा तुम्ह मावित करनी है उसका दावा मही ह (२) फिर देखो कि उस दावे के सही फज करलेने से क्या २ ननीने निकलते हैं (३) उसके बाद दया फल करो कि यह नतीजे उन नतीजों में से किसी के मुताबिक हैं या नहीं जिनका तुम मही या मलत होना अब तक मावित कर चुके हो (४) अगर उनमें से कोई नती जा उन नतीजे के मुताबिक है जिनको तुम For Private and Personal Use Only
SR No.020605
Book TitleRekhaganit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaram Babu
PublisherAtmaram Babu
Publication Year1900
Total Pages220
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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