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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (११) जिनके अनुग्नह सुधा से सिंचित होकर मुझ जैसा मंदबुद्धि भी साक्षर बन गया । अहो ! गुरु का माहात्म्य सचमुच अवर्णनीय है। (१२-१३) भिक्ष गण के नवम आसन पर, वर्तमान में महान् प्रभावी आचार्य श्री तुलसी हैं। निरन्तर श्रमरत एवं धर्म प्रचार में दक्ष आचार्य श्री आज के युग के अनुकूल उपदेश देते हुए अणुव्रत आन्दोलन का प्रचार कर रहे हैं । आधुनिक लोग प्रायः उनसे परिचित हैं। प्रभाव से आकृष्ट होकर अनेक प्रकार के लोग आचार्य श्री से वार्तालाप करने आते रहते हैं। (१४-१५) उन गुरु चरणों का अनुगामी मुनि श्री केवलचन्द्र जी का पुत्र, श्रो धन मुनि एवं आर्या दीपां जी का लघुभ्राता, चन्दनमुनि ने (काव्यकर्ता) जो काव्य कल्पना का रसिक है, एकावनवें वर्ष में प्राकृत भाषा का अध्ययन किया। (१६) बालकों के लिए भी सुग्राह्य, ऐसा अल्प समास वाला तथा मधुर कथानक युक्त प्राकृत भाषा में प्रवेश के लिए इस गद्य काव्य की रचना की। (१७) श्री मोहनविजय ने गुजराती भाषा को गीतिका में इस कथानक का प्रणयन किया है । उसी से यह कथासूत्र साभार लिया गया है। (१८) मेरे इस प्रथम प्रयास में अनेक दोषों की संभावना हो सकती है। आशा है विज्ञजन उनका विशोधन कर देंगे। (१६-२०) विक्रम संवत् २००२ में जयपुर में चतुर्मास किया। श्री लाल मुनि एवं श्री मूल मुनि दोनों ही भक्तिभाव के साथ सेवा करते हैं। यहां एकदिन अचानक शिकारी कुत्तों के आक्रमण से हाथ जख्मी हो गया । पक्का पाटा बंधा । इस समय में इस काव्य की मैंने रचना की। यह कृति सबको कल्याणकारी हो। For Private And Personal Use Only
SR No.020603
Book TitleRayanwal Kaha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanmuni, Gulabchandmuni, Dulahrajmuni,
PublisherBhagwatprasad Ranchoddas
Publication Year1971
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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