SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 335
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir छठा उच्छ्वसि ६१ । सुखी गृहस्थ घर से निकलता है ? गृहस्थ अनेक ऊनी वस्त्र पहनकर विशिष्ट शक्तिदायक औषधों से मिश्रित मिष्ठान्न खाकर, स्त्री और पुत्र से परिवारित होकर, अग्नि के पास बैठकर हेमन्त ऋतु के दिनों को बिताता है, वहां निस्पृह जी, श्रमण और तापस, फटे वस्त्र पहनने वाला या नग्न व्यक्ति सानन्द वृक्षमूल में रहकर ध्यान करता है, परमेष्ठी का स्मरण करता है, क्षुधा को सहता है और सुखपूर्वक शीतकाल को व्यतीत करता है । इसी प्रकार उष्णकाल भी भोगियों के लिए अनुकूल नहीं है ग्रीष्मऋतु में सूर्य बहुत तेज किरणों से तपता है । सारी धरती अग्नि के समान हो जाती है । उस समय सारा वातावरण तप्त हो जाता है और असहनीय वायु चलती है। बार-बार पोंछने पर भी पसीना नहीं सूखता । प्यास से आकुल होठ, तालु और कंठ पानी पीने पर भी, कभी पानी पिया ही नहीं, 'ऐसा अनुभव करते हैं । उस ऋतु में जिस पुण्यवान् व्यक्ति के पास समग्र भोग सामग्री है, जो अनेक प्रकार के शीतल पेय पीता है और वातानुकूलित गृह में रहता है, वह घर को क्यों छोड़ेगा ? ऐसे समय में भी मुनि जहां कहीं स्थित होकर, जो कुछ ठंडा या गरम भोजन खाता हुआ, ऊष्ण जल पीता हुआ, बिना बिछौने भूमि पर सोता हुआ भी परम प्रसन्न दीखता है। जो योगी प्रतिपल परमपद का स्मरण करता है वह ग्रीष्मकाल की तप्ति का अनुभव कैसे करेगा ? जिसके लिए सभी बाहरी पदार्थ बाह्य हैं, उसके लिए सुख दुःख की क्या कल्पना हो सकती है ? अहो ! मुनि का मार्ग विचित्र होता है । इसी प्रकार वर्षाकाल भी गृहस्थों के लिए सुखावह नहीं होता । जब मेघ बरसते हैं तब सूर्य प्रच्छन्न हो जाता है और घना अंधकार छा जाता है। हृदय को कम्पित करती हुई बिजली चमकती है । मेघ का गर्जन कर्ण विवर को भेद डालता है । रास्ते कीचड़मय हो जाते हैं। नदियां वेग से बहने लगती हैं । मेघ में छिपा हुआ सूर्य भी कदाचिगु आन्तरिक घाम का अनुभव करता है । ऐसे समय में पत्नी से विरहित कौन व्यक्ति सुख से रह सकता है ? भाग्य से परवश प्रवासी होने वाला कोई भी व्यक्ति अपने घर का रात-दिन स्मरण करता रहता है । प्रवासी पति की मानिनी पत्नी पपीहा के 'पिउ पिउ ' शब्द से अपने पति का स्मरण करती हुई उत्कृष्ट अन्तर्वेदना का अनुभव करती है । उस पावस काल में भी पानी भोजन का प्रत्याख्यान कर गिरि कन्दराओं में रहने वाले, शरीर और मन की समस्त चिन्ताओं से रहित, अक्षुण्ण ब्रह्मचर्य से परिवर्धित तेज वाले, ध्यान में लीन मुनि अलक्षित और अतर्क्यं सुख का अनुभव करते हुए समय बिताते हैं । अत: मुनियों के लिए सभी ऋतुएं अनुकूल होती हैं । I For Private And Personal Use Only
SR No.020603
Book TitleRayanwal Kaha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanmuni, Gulabchandmuni, Dulahrajmuni,
PublisherBhagwatprasad Ranchoddas
Publication Year1971
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy