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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पहला उच्छ्वास इस प्रकार सेठ जिनदत्त के सारी अनुकूलताएँ थीं, किन्तु वह एक चिंताशल्य से उद्विग्न रहता था। कुलदीपक पुत्र के बिना सारा धन-धान्य भृत्य और नौकरों से परिपूर्ण सुसज्जित और सुमंडित घर भी श्मशान की भांति परिलक्षित होता था। हा ! विधि कितनी निष्ठुर और कृपण है । वह किसी का सर्दा ग सुख सह नहीं सकती । सभी प्रकार से सुखी होते हुए भी मनुष्य प्रायः कुछ प्रतिकूलता का अनुभव करता ही है। यह ठीक ही है कि अमत के स्रोत में कहीं न कहीं कालकूट जहर की कोई सूक्ष्म रेखा रहती है। मनुष्य अल्पज्ञ है, मनुष्य के भाग्य में क्या शुभ-अशुभ लिखा है, वह जान नहीं सकता। जिनदत्त अध्यात्मतत्व का वेत्ता था । वह जानता था कि पुद्गलों की परिणति आपात-भद्र और परिणाम-दारुण होती है। इसलिए वह अन्तर्गत चिन्ताशल्य को बहुत नहीं मानता था। वह प्रतिक्षण नमस्कार महामंत्र का स्मरण करता हुआ, सुख से जीवन बिताता था। ___एक बार कौमुदी महोत्सव का समय आया। बहुत सारे पौरजन अनेक प्रकार के वस्त्र और मूल्यवान आभूषणों को धारणकर, अपने-अपने परिवार से परिवृत हो सानन्द यान में या पैदल ही उद्यान की ओर चल पड़े। भानुमती भी भोजन आदि सभी गृहकार्यों से निवृत्त हो, अपने भवन के वातायन में जा बैठी और चौराहे को देखने लगी । अकस्मात् उसकी दृष्टि स्त्रियों के समूह पर जा पड़ी। वे सब अपने पुत्र-पौत्रों से परिवत हो अनेक क्रीड़ाओं में संसक्त थीं। वे परस्पर मिलती थीं, हंसती थीं और खेलती थीं तथा बालकों के सम्बन्ध में नाना प्रकार की बातें करती थीं। कई स्त्रियां अपने बच्चों की अंगुली पकड़ कर मधुरालाप करती हुई, उनको धीरे-धीरे चला रही थीं। कई स्त्रियाँ अपने रोते बच्चों को अनेक प्रकार खिलौने देकर उनको सन्तुष्ट कर रही थीं। हमें गोद में उठाओ-इस प्रकार कई बच्चे हठ कर रहे थे। उनकी माताएं उन्हें गोद में उठाकर, उनके मुखकमल का चुम्बन ले सुख का अनुभव करती थीं। कहीं पर धान्यकण भक्षण में संलग्न कबूतरों के समूह को देखकर कोई अजान बालक माता को विचित्र प्रश्नों से विस्मित बना रहा था। कई माताएं आगे चलनेवाले किसी जटाधारी को दिखाते हुए अपने बच्चों को शीघ्र ही दौड़ने के लिए कह रही थीं । अनेक स्त्रियाँ नाना प्रकार की मिठाइयाँ खरीद कर बड़े प्रेम से अपने बच्चों के मुह में दे रही थीं। कई स्त्रियाँ बच्चों के साथ, मन को आह्लाद देने वाली बातें करती हई अनेक प्रकार के गृह-कार्यों से उत्पन्न मानसिक खेद को कमकर रही थीं। इस प्रकार अनेक बाल-क्रीड़ाओं में रत माताओं को For Private And Personal Use Only
SR No.020603
Book TitleRayanwal Kaha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanmuni, Gulabchandmuni, Dulahrajmuni,
PublisherBhagwatprasad Ranchoddas
Publication Year1971
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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