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विस्तृत विवेचन सहित
बसता है। संसारी जीव का चिन्तन सदा सांसारिक पदार्थों के संचय के लिये हुआ करता है, पर यमराज उसे बीच में ही दवोच देता है। ___अतः संसार में से मोह को कम करना तथा सदा यह चिन्तवन करना कि ये संसार के सभी पदार्थ जिनको बड़े यत्न और कष्ट से संचित किया है, यहीं रहने वाले हैं। ये एक कदम भी हमारे साथ नहीं जायँगे, रत्नत्रय प्राप्ति का साधन है। लक्ष्मी, यौवन, स्त्री, पुत्र, पुरजन, परिजन, सभी क्षण भंगुर हैं; विनाशीक हैं। मरने पर हमारे साथ पुण्य-पाप के अतिरिक्त कोई वस्तु नहीं जा सकती है, सभी भौतिक पदार्थ यहीं रह जायगे, सोचना आत्मिक ज्ञान प्राप्ति में सहायक है। जीव क्षणिक ऐश्वर्य प्राप्त कर अभिमान में आकर दूसरों की अवहेलना करता है, अपमान करता है तथा अपने को ही सर्वगुणसम्पन्न समझता है, पर उसे यह पता नहीं कि एक दिन उसका अभिमान चूर-चूर हो जायगा। वह खाली हाथ आया है और खाली हाथ जायगा, अपने साथ ५-जल वुब्बयसारित्थं धणजुन्वण जीवियंपि पेच्छंत।। मगणंति तो वि णिचं अइवलिओ मोहमाहप्पो॥
-स्वा० का० अ० गा. २१ अर्थ-यह मोही प्राणी पानी के बुलबुले के समान क्षणविध्वंशी धम
यौवन, ऐश्वर्य आदि को नित्य मानता है, महान् आश्चर्य है।
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