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विस्तृत विवेचन सहित
इसमें स्वच्छता किसीभी बाह्य साधन से नहीं आ सकती। केशर, चन्दन, पुष्प, सुगन्धित मालाएँ शरीर के स्पर्शमात्र से अपवित्र हो जाती' हैं। अतः यह शरीर सुन्दर वस्त्राभूषण धारण करने से अलंकृत नहीं हो सकता। वास्तव में शरीर की शोभा सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान,
और सम्यकचारित्र के धारण करने से ही हो सकती है। क्योंकि अनित्य पदार्थों के द्वारा इस अनित्य शरीर को अलंकृत नहीं किया जा सकता। यह प्रयास इस प्रकार व्यर्थ माना जायगा जैसे कि कीचड़ लगे पाँव को पुनः पुनः की चड़ से धोना। अतः इस मलवाही अनित्य शरीर को प्राप्त कर आत्मकल्याण के साधनीभूत रत्नत्रय को धारण करना प्रत्येक जीव का कर्तव्य है। जो साधक सांसारिक विषय-कषायों का त्याग करना चाहता है, उसे भौतिक ऐश्वर्य, यौवन, शरीर आदि के वास्तविक स्वरूप का विचार करना आवश्यक है। इनका यथार्थ विचार करने पर १-केशरचन्द पुष्प सुगान्धित वस्तु देख सारी ।
देह परस ते होय अपावन निस-दिन मल जारी ॥ २-काना पौंडा पड़ा हाथ यह चूसै तो रोवै । फलै अनन्त ज धर्मध्यान की भूमि विर्षे बोवै ॥
-मंगतराय-द्वादश भावना मोक्ष प्रात्मा सुखं नित्यः शुभः शरणमन्यथा । भवोऽस्मिन् वसतो मेऽन्यत् किं स्यादित्यापदि स्मरेत् ॥
-सागार ध० ५, ३०
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