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प्रस्तावना
सिद्धान्त-भवन के विशाल संग्रह ने हमारे इस विचार को प्रोत्साहन दिया, जिससे इस चातुर्मास में हमने इसका अनुवाद कर दिया । समग्र ग्रन्थ एक साथ नहीं छप सका; क्योंकि पृष्ठ संख्या इतनी अधिक हो जायगी जिससे पाठकों को असुविधा होगी। अतः इसे चार भागों में प्रकाशित किया जा रहा है। इसके विवेचन में संस्कृत, प्राकृत और हिन्दी के उपलब्ध जैन वाङ्मय का उपयोग किया गया है। इने स्वाध्याय योग्य बनाने में शक्तिभर प्रयत्न किया है।
आभार और आशीर्वाद जिन पूर्वाचार्यों के ग्रन्थों का सारांश लेकर विवेचन लिखा गया है, उन सबका मैं हृदय से आभारी हूं। श्री जैन-सिद्धान्तभवन, पारा का भी आभारी हूँ क्योंकि इस भण्डार के ग्रन्थ रत्नों से मुझे ज्ञानवर्द्धन में पर्याप्त सहायता मिली है। मैं इस ग्रन्थ के सहसम्पादक पं० नेमिचन्द्र ज्योतिषाचार्य, बालाबिश्राम की संचालिका श्रीमती ब्र० पं० चन्दाबाईजी, सरस्वती प्रेस के संचालक श्री देवेन्द्रकिशोरजी, श्रीमती चम्पामणि धर्मपत्नी स्व० बा० भानुकुमारजी जैन एवं समस्त दि० जैन समाज पारा को आशीर्वाद देता हूँ, जिनके सहयोग से यह ग्रन्थ पूर्ण किया गया है।
पौष कृष्णा १३ । शुभाशीर्वादवी० सं० २४७६ । मुनि संघ, आरा
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