________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 240 रत्नाकर शतक समझ जाते हैं, जिससे उनमें मुनि के समान स्थिरता आजाती है। आत्मज्ञान उनमें प्रकट हो जाता है, जिससे वे पर पदार्थों को अपने से भिन्न समझते हुए अपने स्वरूप में विचरण करते हैं। जो गृहस्थ उपयुक्त प्रकार से समता धारण कर लेता है, अपने परिणामों में स्थिर हो जाता है, उसे कल्याण में बिलम्ब नहीं होता। महाराज भरत चक्रवर्ती के समान वह घर में अनासक्त भाव से रह कर भी राज-काज सब कुछ करता है, फिर भी उसे केवलज्ञान प्राप्त करने में देरी नहीं होती। उसकी आत्मा इतनी उच्च और पवित्र हो जाती है जितनी एक मुनि की। उसके लिये वन और घर दोनों तुल्य रहते हैं। परिग्रह उसे कभी विचलित नहीं करता है और न परिग्रह की ओर उसकी रुचि ही रहती है। अतः प्रत्येक व्यक्ति को सर्वदा धैर्य धारण कर आत्मचिन्तन की ओर अग्रसर होना चाहिये / For Private And Personal Use Only