________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
११८
रत्नाकर शतक
हो वह द्रव्य विशिष्ट पुण्य का कारण नहीं होता है। ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य शुद्धाचरण करने वाले दाता कहलाते हैं। दाता में श्रद्धा तुष्टि भक्ति, विज्ञान, अलोभता, क्षमा और शक्ति ये दाता के सात गुण हैं। पात्र में अश्रद्धा न होना, दान में विषाद न करना । फल प्राप्ति की कामना न होना दाता की विशेषता है। ____पात्र तीन प्रकार के होते हैं-उत्तम, मध्यम और जघन्य । महाव्रत के धारी मुनि उत्तम पात्र हैं, व्रती श्रावक मध्यम पात्र हैं
और सम्यग्दृष्टि अविरति श्रावक जघन्य पात्र हैं। योग्यपात्र को विधि पूर्वक दिया गया दान बटबीज के समान अनेक जन्म-जन्मा. न्तरों में महान् फल को देता है। जैसे भूमि की विशेषता के कारण वृक्षों के फलों में विशेषता देखी जाती है, उसी प्रकार पात्र की विशेषता से दान के फल में विशेषता हो जाती है। प्रत्येक श्रावको अपनी शक्ति के अनुसार चारों प्रकार के दानों को देना चाहिये।
शक्ति अनुसार प्रति दिन तप भी करना चाहिये। कल की अपेक्षा न कर संयम वृद्धि के लिये, रागनाश के लिये तथा कर्मों के क्षय के लिये अनशन, अवमौदर्य वृत्तिपरिसंख्यान, रसपरित्याग, विविक्तशय्यासन, कायक्लेश, प्रायश्चित्त, विनय, वैयावृत्य, स्वाध्याय, व्युत्सर्ग और ध्यान इन बारह तपों को करना चाहिये ।
For Private And Personal Use Only