________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
विस्तृत विवेचन सहित
तो इसकी स्थिति नहीं रह सकेगी। शीत, आतप आदि की बाधा भी यह नहीं सह सकता है।
इस अपवित्र शरीर को यदि समुद्र के जल से स्वच्छ किया जाय तो भी यह शुद्ध नहीं हो सकता है। समुद का जल समापन हो जायगा पर इसकी गन्दगी दूर न हो सकेगी। कविवर भूगरदास ने शरीर के स्वरूप का वर्णन करते हुए बताया हैमात-पिता रज वीरज सों उपजी सब सात कुधात भरी है । माखिन के पर माफिक बाहर चामके बेठन बेढ धरी है । नाहिं तो आय लगें अब ही बक वायस जीव बचैं न घरी है। देह दशा यहि दीखत भ्रात घिनात नहीं किन बुद्धि हरी है । __अर्थ-यह शरीर माता के रज और पिता के वीर्य से मिलकर बना है, इसमें अस्थि, मांस, मज्जा, मेद आदि भरे हुए हैं। मक्खियों के पंख जैसा बारीक चमड़ा चारों ओर से लपेटा हुआ है, अन्यथा बिना चमड़े के मांस पिण्ड को क्या कौवे छोड़ देते ? कभी के खा जाते। शरीर की इस घिनौनी दशा को देखकर भी मनुष्य इससे विरत नहीं होता है, पता नहीं उसकी बुद्धि किसने हर ली है ?
यह शरीर ऐसा अपवित्र है कि इसके स्पर्श से कोई भी सुगन्धित और पवित्र वस्तु अपवित्र हो जाती है। इस बात की
For Private And Personal Use Only