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विस्तृत विवेचन सहित
उदय होकर भी बिना फल दिये नष्ट होता है, तो उसका प्रदेशोदय कहलाता है।
उदीरणा-पुरुषार्थ द्वाग नियत समय से पहले ही कर्म का विपाक हो जाना उदीरणा है। जैसे आमों के रखवाले आमों को पकने के पहले ही तोड़कर पाल में रखकर जल्दी पका लेते हैं, उसी प्रकार तपश्चर्या आदि के द्वारा असमय में ही कर्मों का विपाक कर देना उदीरणा है। उदीरणा में पहले अपकर्षण क्रिया द्वारा कर्म की स्थिति को कम कर दिया जाता है, जिससे स्थिति के घट जाने पर कर्म नियत समय के पहले ही उदय में आता है।
संक्रमण ---एक कर्म प्रकृति का दूसरी सजातीय कर्म प्रकृति के रूप में बदल जाना संक्रमण है। कर्म की मूल प्रकृतियों में संक्रमण नहीं होता है; ज्ञानावरण कभी दर्शनावरण के रूप में नहीं बदलता और न दर्शनावरण कभी ज्ञानावरण के रूप में। संक्रमण कर्मों की अवान्तर प्रकृतियों में ही होता है। पुरुषार्थ द्वारा कोई भी व्यक्ति असाता को साता के रूप में बदल सकता है। आयु कर्म की अवान्तर प्रकृतियों में भी संक्रमण नहीं होता है।
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