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विस्तृत विवेचन सहित
परिणाम होते हैं, वे भावकर्म तथा इन भावों के निमित्त से जो कर्मरूप परिणमन करने की शक्ति रखनेवाले पुद्गल परमाणु खिंचकर आत्मा से चिपट जाते हैं वे द्रव्यकर्म कहलाते हैं। भावकर्म और द्रव्यकर्म इन दोनों में कार्य-कारण सम्बन्ध है। द्रव्यकर्मों के निमित्त से भावकम और भावकों के निमित्त से दव्यकर्म बंधते हैं। द्रव्यकर्म के मूल ज्ञानावरण, दर्शनावरण
आदि आठ भेद हैं। उत्तर भेद ज्ञानावरण के पाँच, दर्शनावरण के नौ, वेदनीय के दो, मोहनीय के अट्ठाईस, आयु के चार, नाम के तिरानवे, गोत्र के दो और अन्तराय के पाँच भेद हैं। उपर्युक्त
आठ कर्मों के भी घातिया और अघातिया ये दो भेद हैं। ____घातिया कर्मों के भी दो भेद हैं --सर्वघाती और देशघाती। जो जीव के गुणों का पूरी तरह से घात करते हैं, उन्हें सर्वघाती
और जो कर्म एक देश घात करते हैं, उन्हें देशघातो कहते हैं। ज्ञानावरण की ५ प्रकृतियाँ, दर्शनावरण को १ प्रकृतियाँ, मोहनीय की २८ प्रकृतियाँ और अन्तराय की ५ प्रकृतियाँ इस प्रकार कुल ४७ प्रकृतियाँ घातिया कर्मों की हैं। इनमें से २६ देशघाती
और. २१ सर्वघाती कहलाती हैं। घालिया कर्म पाप कर्म माने गये हैं। इन कर्मों का फल सर्वदा जीव के लिये भकल्याणकारी ही होता है। इनके कारण जीव सदा उत्तरोतर
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