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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org विस्तृत विवेचन सहित थी। इतना अभ्यास करना अभिधारणा है । वायु- धारणा -- फिर साधक चिन्तन करे कि मेरे चारों ओर बड़ी प्रचण्ड वायु चल रही है। इस वायु का एक गोला मण्डलाकार बनकर मुझे चारों ओर से घेरे हुए है । इस मण्डल में आठ जगह 'स्वाय स्वाय' लिखा है । यह वायु मंडल कर्म तथा शरीर की रज को उड़ा रहा है, आत्मा स्वच्छ व निर्मल होता जा रहा है। इस प्रकार का चिन्तन करना वायु धारणा है । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जल - धारणा - पश्चात् चिन्तन करे कि आकाश में मेघों की • -- ६५ घटाएँ आ गयीं, बिजली चमकने लगी, बादल गरजने लगे और खूब जोर की वृष्टि होने लगी है। पानी का अपने ऊपर एक अर्धचन्द्राकार मण्डल बन गया है, जिस पर प प प प कई स्थानों आत्मा के ऊपर लगी हुई कर रही हैं । पर लिखा है । ये पानी की धाराएँ कर्म-रज को धोकर श्रात्मा को साफ चिन्तन करना जल धारणा है । इस प्रकार तरवरूपवती धारणा वही साधक चिन्तवन करे कि अब मैं सिद्ध, बुद्ध, सर्वज्ञ, निर्मल, कर्म तथा शरीर से रहित, चैतन्य श्रात्मा हूँ । पुरुषाकार चैतन्य धातु की बनो शुद्ध मूर्ति के समान हूँ। पूर्ण चन्द्रमा के समान ज्योतिरूप दैदीप्यमान हूँ | For Private And Personal Use Only
SR No.020602
Book TitleRatnakar Pacchisi Ane Prachin Sazzayadi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmedchand Raichand Master
PublisherUmedchand Raichand Master
Publication Year1922
Total Pages195
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati
File Size10 MB
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