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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ६४ www.kobatirth.org रत्नाकर शतक Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ऐ ओ औ अं अः बीच में ' हैं ' लिखा है । दूसरा कमल हृदय स्थान पर नाभि कमल के ऊपर आठ पत्तों का औंधा विचार करना चाहिये । इस कमल को ज्ञानावरणादि आठ पत्तों का कमल मानना चाहिये । पश्चात् नाभि कमल के बीच में जहाँ 'हैं' लिखा है, उसके रेफ से धुंआ निकलता हुआ सोचे । पुनः अग्नि को शिखा उठती हुई सोचे । यह लौ उपर उठकर आठ कर्मों के कमल को जलाने लगी । कमल के बीच से फूटकर अभि की लौ मस्तक पर आ गयी, इसका आधा भाग शरीर के एक तरफ और शेष आधा भाग शरीर के दूसरी तरफ निकल कर दोनों के कोने मिल गये । श्रमिमय त्रिकोण सब प्रकार से शरीर को वेष्टित किये हुए है । इस त्रिकोण में र र र र र र र अक्षरों को अग्निमय फैले हुए विचारे अर्थात् इस त्रिकोण के तीनों कोण श्रनिमय र र र अक्षरों के बने हुए हैं। इसके बाहरी तीनों कोणों पर ममय साथियां तथा भीतरी तीनों कोणों पर निमय ॐ हैं लिखा सोचे । पश्चात् सोचे कि भीतरी अभि की ज्वाला कर्मों को और बाहरी आमि की ज्वाला शरीर को जला रही है। जलते जलते कर्म और शरीर दोनों ही जलकर राख हो गये हैं तथा अग्नि की ज्वाला शान्त हो गयी अथवा पहले के रेफ में समा गयी है, जहाँ से वह उठी For Private And Personal Use Only
SR No.020602
Book TitleRatnakar Pacchisi Ane Prachin Sazzayadi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmedchand Raichand Master
PublisherUmedchand Raichand Master
Publication Year1922
Total Pages195
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati
File Size10 MB
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