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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संकर्णि वर्णमेळ. ( १. स ज ज भर=१५ मणिहंस, अंक १,०३० .)२. त भ र सलग-१४ अलकालिका. अंक९६७ ३. भ ज ज भ र=१५ मयूबदना. अंक १,०३१ (४. न स स ज जग-१६. तरवारिका. अंक १,०८४ प्रथमे तमे स ज जा भरा गण आणजो, बीजे पदे त भ रा स ला ग खरे सजो; सज्जन तृतीय पदे भ जा ज भ रा धरो, मृदव श्रुतिमां न स सा ज जा ग पदे करो. (१. न भ भ र य=१५ रूप ५,३०४ १. १९० कलंबडंबर. २. सभ स ज र ग-१६ रूप १०,९९६ ) ३. न न र ज र ग=१६ रूप १०,९४४ (३. म न ज र य ग-१६ रूप ५,४९७ प्रथममां न भ भा र य सद्य तो धरेछे, स भ सा जा र ग कवि तो द्वितीयमां करछे; न न र ज र ग ए त्रोंजे कलंक्डंबरे छे, चोथे पाद म न ज रा य गा सदाय रहेछे. ( १. म स त य भ म =७+६+६=१८ रूप: २५,३६९ ए)२.तन त य म स ग ग-+५+७=२०, १,२३,७०९ ) ३. त न म स भ स गग-८+१+१=२.०, १,२४,४७७ (४. तज जन स न यग-(+७+७=२१,,५,०७,७५७ पले पाद म सा ता, या भ म साते, पांच छए. छेदो, बीजे त न त य भा सा, ग ग आठे ने, शर मुनि छे छेदो; आठे शर मुनि ता ना, मा सः भः सा ग्गा, मनसुखमां त्रीजे, चोथे त ज जा न स ना, य ग वसु मुनि ने, मुनि यति तो कीजे. मारा परम मित्र मनसुखराम सूर्यरामना नामर्नु आ वृत्त नवु कल्प्यु छ, मनसुख. For Private And Personal Use Only
SR No.020597
Book TitleRanpingal Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRanchodbhai Udayram
PublisherKutchh Darbari Mudrayantra
Publication Year1902
Total Pages723
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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