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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५०० रणपिंगळ. अर्द्ध समवृत्त. १२५ शिशमखी. १,३. न भ ज ज ग.=१३ सारसनावली.८७१ १२,४.न भसजग. =१३ विरोधिनी. ८६१ शिशुमुखी न भ ज जा गुरु ओजमां; पद विषे न भ स ज गा अनोजमां. विलोमे अनिरया, अंक १२६, (१,३. न भ स ज ग.१३ विरोधिनी. ८६१ १२६ अनिरया. "१२,४. न भ ज ज ग.=१३ सारसनावली.८७१ विषममां न भ स ज गा करो तमे; अनिरया न भ ज जा ग धरो समे. शिशुमुखीनुं विलोम, जुवो अंक १२५. . १६,१६ नां रूप ४,२९,४९,०१,७६० थायछे. १२७ वासववासिनी.. १,३.न ज भ ज ज ग=१६ रूप२३,४७२ १२,४. त ज भ जज ग-१६ रूप२३,४६९ न ज भ ज जा ग ओज पद वासववासिनी; युग्मे धरवा त जा भ ज ज गा पद वासिनी. वर्ण १४मा अंक ९७९मे कुररीरुता छे ते उपर ल ग वधारवाथी आनुं विषमपद थायछे. विलोमे वासिनी, अंक १२८. १,३. त ज भ ज ज ग.=१६ रूप २३,४६९ । २,४. न ज भ ज ज ग.१६ रूप २३,४७२ ता जा भ ज वासिनी विषममां ज ग को करे; न ज भ ज जा ग माप समपाद विषे धरे. वर्ण १४मां अंक ९७९मे “कुररोरुता" छे ते उपर ल ग वधारवाथी आनां समपद थायछे. विलोमे वासववासिनी, अंक १२७. For Private And Personal Use Only
SR No.020597
Book TitleRanpingal Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRanchodbhai Udayram
PublisherKutchh Darbari Mudrayantra
Publication Year1902
Total Pages723
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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