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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir असंकीर्ण. वर्णमेक. सममां स जा स ज ग थायछे खरे. मधुवारीनुं विलोम अंक ११८. (१,३. म त य स ग.=१३ मत्तमयूर,माया.८ १९ १२० धीरावर्त. W)२,४, म भस मग.=१३ लीलालोल. ७९४ मापे ओजे, मा त य सा गा कवि लावे; (४,९ यति) धीरावर्ते; म भ स म गा युग्मे आवे. (४,९ यति) विलोमे पण एज नाम रहेछे. १०१ १ , २. भ न य न ल.=१२ पंकावली. अंक ९.२ १२,४. म न ज ज ल.=१३ पंकवती. अंक ९०१ अर्द्धरुत विषममां भा न य न ल; युग्म चरण रचवां भ न जा ज ल. विलोमे अल्परुत थायछे, जुवो अंक १२२. (१,३.म न ज ज ल.=१३ पंकवती.अंक९०१ १२२ अल्परुत. १२,४.भ न य न ल.=१३ पंकावली.अंक९०२ अल्परत भ न ज जा ल पदे पर; युग्म चरण भ न या ना लथी कर. विलोमे अर्द्धरुतं, जुवो अंक १२१. (१,३. स ज स स ग.-१३ कलहंम. अंक (२३ १२३ कलना. १२,४. स ज स ज ग.-१३ मंजुभाषिणी.अंक (५८ विषमे स जा, स स ग थी कलना छे; (५,८ यति) सममां स जा स ज ग तो रचायछे. कलनावतीनुं विलोम, जुचो अंक १२४. १२४ कलनावती...२ (१,३. स ज स ज ग.-१३ मंजुभाषिणी. (५८ । २,४. स ज स स ग.=१३ कलहंस. अंक ८२३ कलनावती स ज स जा ग ओजमां; सममां स जा स स ग आण सदा तुं. . कलना, अंक १२३ न पिलोम. For Private And Personal Use Only
SR No.020597
Book TitleRanpingal Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRanchodbhai Udayram
PublisherKutchh Darbari Mudrayantra
Publication Year1902
Total Pages723
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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