SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 655
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रणपिंगळ. अर्द्ध समवृत्त wwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwimmimmmmmmmmmmmmm सभरा गौर यदि सुन्दरी तदा. २ एमां गौ छे तेने बदले ल्गी जोइये. वृत्तास्नाकरनी टीपमा केहेछे के:विषमे यदि सौ जगौ समे; स्तर लागोऽपरवक्रमीरितम्. ३ एमां स्तने बदले स्भ जोइये. आवी रचनाथी अपरवक्र बनेछे, पण अंक २७मां ते जूदा मापथी छे अने आ माप तो सुन्दरोने लागु पडेले. (१,३. स स स ग. =१० उदित. अंक ४४६ ८ वेगवंती. १२,४. भ भ भ ग ग११दोधक,नीलसरूपी.५८० गण छे स स सा ग अयुग्मे वेगवती भ भ भा ग ग युग्मे. विलोमे वर्गवती, जुबो अंक १९ (१,३. म स ज ग.=१० विराट, शुद्धविराट, ४६६ २,४. स भ र ल ग.११ सीधु. अंक. १९९ ओजे थाय म सा ज. गा खरे; - स भ म लग ग सुधा समे करे. [ १,३. म स ज ग.-१०विराट, शुद्धविराट.४६६ .१० करधा. २,४. न न र ल ग.=११ सुभद्रिका. ६०३ ओजे. तो म स ज ग छे; समे न न र ल करधा ग तो गमे. विलोमे वैयाली, अंक २१ (१,३. स. स. जग.=१० सहजा. ११ अरुन्तुद.१२,४. न ज ज र.=१२ मालती. ७३१ विषमे स स जा ग तो धरो ९ सुधा. For Private And Personal Use Only
SR No.020597
Book TitleRanpingal Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRanchodbhai Udayram
PublisherKutchh Darbari Mudrayantra
Publication Year1902
Total Pages723
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy