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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संकीर्ण. वर्णमेळ. छे ते आनां विषम पद थयां छे, आ प्रमाणे उलटासुलटी थाय ते विलोम केहेवायछे. वैसारीनुं विलोम जुवो अंक ३. १०,११ना रूप २०,९७,१५२ थायछे. ५ भद्रविराट, (१,३. त ज र ग़.=१० नमेरु. .. ४४० समुद्रकान्ता..२,४. म स ज ग ग.११. विश्वविराट. १६३ छे भद्रविराट ता ज रागे; युग्मे मा स ज गा ग ठीक लागे. कान्ता, युद्धविराटनुं विलोम, जुवो अंक १७. वैतालिय प्रकरणमा औपच्छदासिक, पाछळ पृ. २१४ मे जुवो. तेमां ६ अने ८ मात्रा अनुक्रमे जणावी छे, तेने बदले आहे गण नकी कया छे एटलोज फेर छे. (१,३. स ज स ग. = १० रूप २३६ ६ केतुमती. २ । २,४. भ र नग ग. = ११ रूप ४७१ धरजो स जा स ग अयुग्मे; केतुमती भ रा न ग ग युग्मे. विलोमे केतु. जुवो अंक १८. ७ सुंदरी, सुरमालिका, (१.३. स स ज ग.=१० सहजा.४६८ कमला, वियोगिनी.१२,४. सभ र ल ग.=११ सीधु. ५९९ विषमे स स जा ग सुंदरी कमला सा भरला गथी ठरी. १ प्राकृत पिंगळसूत्रमा केहेछे केःअयुजो यदि सौ लगौ। पुनः समायोःस्भौ रलगाश्च सुन्दरी. . १ एमां लगो छे त्यां जगी जोइये. तेमज छंदोमंजरीमा छे कै:-- अयुजो यहिं सौ जगौ युजो For Private And Personal Use Only
SR No.020597
Book TitleRanpingal Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRanchodbhai Udayram
PublisherKutchh Darbari Mudrayantra
Publication Year1902
Total Pages723
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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