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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वर्णदंडक. वर्णभेळ. निधि पिंगळमां मनहरण दंडकना (१) प्रकर्ष, (२) काम, (३) सोमकर, अने (४) शोभाधर ए प्रमाणे चार भेद कंह्या छे, तेनां लक्षण नीचे प्रमाणे आप्यां छे:---- (१) प्रकर्षनुं लक्षण. (दोहा). शश दश पुनि घट नख बरन, चरन होत विश्राम; इकतिस बरनहि अंत गुरु, दंडक प्रकर्ष नाम. प्रथमनो "शश' शब्द ते दशने बदले हस्तदोष होय तो अने नख एटले वशिने बदले पांच गणिये तो १०,१०,६,९. =३१ वर्ण, तेमां अंते गुरु, एवो अर्थ थाय.. (२) कामनुं लक्षण. (दोहा) वसु वसु वसु पुनि सात पर, विरति अंत गुरु होय; इकति बरन वसु चरनहिं, काम नाम हे सोय. ८,८,८,७=३१ वर्ण, तेमां अंते गुरु, तेने काम दंडक केहे छे. उपर जणावेला काव्यार्णव ग्रंथमां पण आ दंडकनुं माप उपर प्रमाणे छे. उपरना दोहाना उत्तरार्द्धमां "वसु चरनहि" ए कंइ अशुद्धि छे. (३) सोमकर. लक्षण. (दोहा) अंत गुरुहि कामस बरन, चरन एक परमान; वसु वसु पुनि पंद्रह विरति, कहत सोमकर जाने. ८,८,१५=३१ वर्ण तेमां अंते गुरु. “कामस बरन" एटले काम समान वरण ३१ एवो अर्थ थइ शके. For Private And Personal Use Only
SR No.020597
Book TitleRanpingal Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRanchodbhai Udayram
PublisherKutchh Darbari Mudrayantra
Publication Year1902
Total Pages723
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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