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वर्णदंडक.
वर्णभेळ.
निधि पिंगळमां मनहरण दंडकना (१) प्रकर्ष, (२) काम, (३) सोमकर, अने (४) शोभाधर ए प्रमाणे चार भेद कंह्या छे, तेनां लक्षण नीचे प्रमाणे आप्यां छे:---- (१) प्रकर्षनुं लक्षण. (दोहा).
शश दश पुनि घट नख बरन, चरन होत विश्राम; इकतिस बरनहि अंत गुरु, दंडक प्रकर्ष नाम. प्रथमनो "शश' शब्द ते दशने बदले हस्तदोष होय तो अने नख एटले वशिने बदले पांच गणिये तो १०,१०,६,९. =३१ वर्ण, तेमां अंते गुरु, एवो अर्थ थाय.. (२) कामनुं लक्षण. (दोहा)
वसु वसु वसु पुनि सात पर, विरति अंत गुरु होय;
इकति बरन वसु चरनहिं, काम नाम हे सोय. ८,८,८,७=३१ वर्ण, तेमां अंते गुरु, तेने काम दंडक केहे छे. उपर जणावेला काव्यार्णव ग्रंथमां पण आ दंडकनुं माप उपर प्रमाणे छे. उपरना दोहाना उत्तरार्द्धमां "वसु चरनहि" ए कंइ अशुद्धि छे. (३) सोमकर. लक्षण. (दोहा)
अंत गुरुहि कामस बरन, चरन एक परमान;
वसु वसु पुनि पंद्रह विरति, कहत सोमकर जाने. ८,८,१५=३१ वर्ण तेमां अंते गुरु. “कामस बरन" एटले काम समान वरण ३१ एवो अर्थ थइ शके.
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