SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 635
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४५४ १३ १४९७ : मनोहर.. १४ १४९८ रंगीका.... १५ १४९९ डमरु... १६ १५०४ विजया...... ...... *** www.kobatirth.org रणपिंगळ. *****...... Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir f यथेच्छ ३० वर्ण+लल. ( ८, ८, ८, ८ यति. ( यथेच्छ ३१ वर्ण ल. १०, ८, ८, ६ यति. ....... बधा लघु वर्ण... समवृत्त. ....... } 'यदि वर्ण । अंते लग अथवा नगण. यथेच्छ ३३ वर्ण. गुरु लघुनो नियम नहि. १६. १७ यति. For Private And Personal Use Only ३२ } ३२ ३२ ३२ १७ १५०५ त्रीशुं कवित.. १४८७ कवित, मनहरण. लघु गुरुनो नियम नहि ८,८,८,७ यति. ३१ वर्ण. आठ आठ आठ साते, यति एकत्रीश मांह, गुरु लघु केरो निम, कवितमां छे नहि. आने पंण केटलाक मनहर के छे. एकत्री, बत्रीशुं अने तेत्रीशुं कवित केहेवायछे. वृत्तरत्नावलीमां नीचे प्रमाणे छे: ३३ एकद्वित्रियुतास्त्रिंशद्वर्णाः संति कवित्वके, अन्ते गुरुलघुप्सातः क्रमात् कविभिः कृता वीप्सा त्रिवर्णाभिहिता गुरुशून्या सुखावहा, अन्यथा कर्णतुलया तोलिता विषमा भवेत्. व्रजभाषामा कवित घणां रचायां छे, अने तेमां उपर लख्या प्रमाणे प्रासमां वीप्सा आणेली घणी जोवामां आवेछे, अने ते aatai अने त्रीशां कवितमां होयछे. तेमां छेल्ला बे के ऋण लघुवाळी वीप्सा मधुरी लागेछे. मनहरण दंडकनुं राजा संग्रामसिंहजीकृत काव्यार्णवमां १६ अने १५ अक्षर मळी ३१ अक्षरनुं चरण कह्युं छे. अने तेनुं बीजुं नाम सौरदंडक आप्युं छे. वळी वृंदावनकृत छंदो
SR No.020597
Book TitleRanpingal Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRanchodbhai Udayram
PublisherKutchh Darbari Mudrayantra
Publication Year1902
Total Pages723
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy