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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रणपिंगळ. समवृत्त (५) अंत्य सप्तकमां सात वर्ण होवाना कारणथी सर्व प्रयोग विषम थायछे. जेमके "सीताराम कहिये." "रित्रनको चाहिये," “णानुवाद गहिये." "बाहेइ निबहिये." "रामहिं मनाइये."... - "राधिके शरण है.” इत्यादि. (६) सोळ अने पंदर वर्णोपर शब्द पूर्ण होवोन जोइये. (७) समअथवा विषम प्रयोगनो योग्य उपयोग प्रत्येक अष्टक मां अथवा अष्टकना परस्पर संबंधमां पण राखवो योग्य छे.. निकृष्ट प्रयोग रचवाथी बनी शके तेटलुं अलग रेहे, जोइये, नहितो कवित कर्णकटु थशे. (८) कवितनी रचनामादे नीचेनुं कवित कंठस्थ करवू लाभकारी थशे. आठ आठ आठ पछी, सात वर्ण सारा सज, अंतपर एक गुरु, धारी धारी आणजे; सम सम सम सम, विषम विषम सम, सम पछी चे विषम, एम योग जाणजे; युगल विषम मध्य, समपद सज नहि, लय नष्ट थाय,सज्ये एम उर धारजे, आवी रीति प्रतिपद, नियंम कवित केरा,अंतरमा आणी आणी, कवित सुधारजे. . प्रत्येक कवित अथवा सवैयाने बेवार बोलवानी रीति छे, केमके तेनो संपूर्ण आशय चोथा चरणमां अथवा तेना पण उत्तरार्द्धमा रहेलो होयछे. एटले चो) चरण बोलवानो समय आवेछे, त्यां सुधी पेहेला त्रण चरणनो संबंध ठीक स्मरणमां रेहेतो नथी, एटले तेने बेवार बोलवाथी सारी रीते अर्थ समजी शकायछे." छंदःप्रभाकर बीजी आवृत्ति (पृ. १८८ थी १९०) कवित विषे विशेष विचार. जे दंडक कवितना सामान्य नामथी ओळखाय छे, अने जे : ३.०थी ते ३३ वर्ण सुधीना बनेछे, ते विषे श्रीयुत बाबू जगनाथदासे "घनाक्षरी नियम रत्नाकर' नामनो ग्रंथ बनाव्यो छे; तेमां तेना विशेष नियम नीचे प्रमाणे जणाव्या छे:---- For Private And Personal Use Only
SR No.020597
Book TitleRanpingal Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRanchodbhai Udayram
PublisherKutchh Darbari Mudrayantra
Publication Year1902
Total Pages723
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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