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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वर्णदंडक वर्ण. "आनंदके" विभक्ति सहित चार वर्णनुं पद... " कहै पद" बेवर्णना बे शब्द **** = सम. सम. * "अवध" त्रण वर्णनो शब्द + "विहारी" त्रण वर्णनो शब्द-विषम. " रैन" बे वर्णनो शब्द. "ज्यावr" aur वर्णनो शब्द " दशरथ" चार वर्णनो शब्द = सम. . = विषम. सम. (१) अष्टकमां बधा सम शब्दो रही शकेछे, जेम - " रैनदिन आठो जाम,” “कहे पदमाकरप" "वित्रपन पालिबेकों" ए त्रणे सम प्रयोग छे. जे अष्टकनो प्रारंभ अपूर्ण शब्दथी थाय छे, तेमां ते अपूर्णने सम मानो लेवो जोइये; कारणके एनी. विषमता तेना आदिना पदांतमां लोपाइ गइ होय छे. जेमके :"वित्रपन" = ४ वर्ण. - "नोदनमे" ४ वर्ण. ए वे सम छे. (२) अष्टकमां विषम विषम अने सम पण रही शकेछे. जेमके "अवध विहारीके वि", "कुंजमें ललित केलि," "कौनको सुजस गाय, " ए त्रणे विषम प्रयोग छे. -- For Private And Personal Use Only (३) अष्टकमां कहिं कहिं सम, विषम, विषम, एम पण आवेछे. प्रेम " राम भजन करत. " ए विषम प्रयोग छे. आ सम, विषम, विषम, प्रयोग प्रथम कहेला बे प्रयोगोथी उतरतो छे एटले विशेषे करीने एवो प्रयोग थतो नथी. एटले एनी गणना सर्वथी छली करी छे. केवल बत्रीश वर्णोंना कवित अथवा बीजा दंडकोमा ए कहि कहि काममां आवेछे अने ए प्रयोग ज्यां काममां आवेछे, त्यां आदिथी अंतसुधी आखुं अष्टक एक सरखुं थायछे. ( ४ ) बे विषमना वचमां एक सम आववुं न जोइये. जेमके "कुंज में केलि ललित" "कौनको गाय सुजस" इत्यादि. ए बे अष्टक कर्णकटु छे.
SR No.020597
Book TitleRanpingal Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRanchodbhai Udayram
PublisherKutchh Darbari Mudrayantra
Publication Year1902
Total Pages723
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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