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वर्णदण्डक.
वर्णमेळ.
४२३
मगण वर्ण करतां बाकीना बधा गणोना संमिलनथी २६ वर्ण उपरांतना प्रचितको जोवामां आवेछे.
उपर प्रमाणे मगणने वर्ज करवा केहछे पण अंक १४३४. नो उद्दाल ९ मगणनो थायछे, तेथी उपरना वचन उपर आधार राखवो उचित नणातो नथी..
उपर जणाव्या प्रमाणे रगणवटित दंडक ३२५ मुधी बनी शकेछ, अने एन प्रमाणे यगणघटित प्रचितक पण बनेछे. तेमन बीजा गणोनी योजनाथी पण बनेछे. छंदःशास्त्रमा बे नगण उपर ५. रगणवाळाने दंडक मान्यो छे, अने सात उपरांतना रगणवाळाने प्रचितक मान्यो छे. अने तेनुं सूत्र नीचे जणाव्युं छे—
शेषः प्रचितः इतः ___ एमां शेषनो अर्थ, सात रगण उपरांत अकेक रगण वधवाथी जे दंडको थायछे ते प्रचित केहेवायछे, एम हलायुधे कस्यो छे; पण वृत्तरत्नाकरनी नारायणभट्टनी बनावेली टीकामां केहेछे के, यगण आदि प्रयोगथी रचेला दंडको कविओए बनाव्या छे माटे, शेषः एटले रगणवाळा दंडक सिवायना यगणोथी रचायला दंडकोने पण प्रचित केहेवा. १४३२ प्रचितक, सिंहविक्रान्तर, २न+७य २७वर्ण, प्रचितक पद पदे बे न छे ने य छे सात पूरा रचो ए प्रकारे प्रवीणो!
१ वागवल्लभ अने छंदोवृत्तसुक्तावलीमां प्रचितकनुं माप आ प्रमाणे छे.
२ छंदोवृत्तमुक्तावलीमा सिंहविक्रान्त नाम आपी तेमां २ल+ ५य लाववा कही उदाहरणमां ५य आप्या छे, ते उपरथी जणायछे के, य यथेच्छ आणवा. पण छंदोमंजरीनुं परिशिष्ट तथा वृत्तरत्नाकरनी नारायणभट्टीमां केहेछे के
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