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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४९ प्रवेशक. marwarimmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm (मालिनी) नेमके ----मधुर वचनधी तो, भोळवाया जनो जे, अन वश थयु मिथ्या उपचारथी को' मतलबों विशवासु, आश हैये भरेला, झटपट ठगी लेवा, ए खरेखात सेला. (गू० हितोपदेश.) आमां पेहेला तथा बीजा चरणना तुकान्त “जे" अने त्री अने चोथा चरणना "लां' सरखाछे माटे ए समविषमान्त्य. जेना कोइ पण चरणना तुकान्त एक बीजाने मळता नआवता होय ते भिन्नतुकान्त्य केहेवायछे. जेमके.---- शशि जता, प्रिय रम्य विभावरी, थइ रखे जती अंध वियोगथी, दिनरुपे सुभगा बनी रहे, ग्रही .. कर प्रभाकरना मन मानीता. (सरस्वतीचंद्र.) आमां चारे चरणना तुकान्त री, थी, ही, अने ता ए असमान छे माटे भिन्नतुकान्त्य. आवा तुकान्तवाळी कविताने अंग्रेजीमां "ब्लाङ्कवर्स' केहेछे. केटलाक आ भिन्नतुकान्त्यना नीचे जणावेला त्रण भेद पाडेछे. १ प्रतिपद भिनान्त्य २ पूर्वार्द्ध तुकान्त्य ३ उत्तरार्द्ध तुकान्त्य.... जेना सघळा चरणोना तुकान्त एक सरखा न होय तेने प्रतिपद भिन्नान्त्य केहेछे. जेमके:-आ एकपास उतरे शशी अस्त मार्गे आ उगता रवितणा न कुसुंबी पाद! For Private And Personal Use Only
SR No.020597
Book TitleRanpingal Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRanchodbhai Udayram
PublisherKutchh Darbari Mudrayantra
Publication Year1902
Total Pages723
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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