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१२ जगती छंद.
वर्णमेळ.
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तावत्प्रविष्टा स्त्वसुरोदरान्तरे, १२ इन्द्रवंशानु.. परंन गीर्णाः शिशवः सवत्सा; ११ उपेन्द्रवज्रानुं. प्रतीक्षमाणेन बकारिवेशनं, १२ वंशस्थy. हतस्वकान्तस्मरणेन रक्षसा. १२ वंशस्थy.
इन्द्रवज्रा, इन्द्रवंशा, उपेन्द्रवज्रा अने वंशस्थ, मिश्रण थवाथी उपजाति थायछे तेनुं उदाहरण प्रबोधचंद्रोदय नाटकमां नीचे प्रमाणे छे. अंक बीजो (प्रवेशक) श्लोक १२मो. विद्याप्रवोधोदय जन्मभूमि, ११ इन्द्रवज्रार्नु.
राणसी ब्रह्मपुरी दुरत्ययाः १२ इन्द्रवंशानुं. अतः कुलोच्छेद विधि विधित्सु, ११ उपेन्द्रवज्रानु. निवस्तु मत्रेच्छति नित्यमेवसः. १२ वंशस्थy.
उपरना उदाहरणो उपरथी एम सिद्ध थायछे के, प्राचीन विद्वानोए एम मान्युं छे के, समाक्षरवृत्तना मिश्रणथी उपजाति थाय, अने वृत्तरत्नाकरनी नारायणभट्टी टोकामां कडंछे के- त्रिष्टुपमां वृत्तोनां मिश्रण थवाथी जेम उपजाति थायछे, तेमन बार तेर अक्षरना समानअक्षरना तथा समान यतिवाळा पादोना मिश्रणथी पण उपजाति थायछे. एटले विषम अक्षरना विषम यतिवाळा, तेमज बे करतां वधारे वृत्तना मिश्रणथी उपजाति वृत्त थायछे, एम रामायण, भागवत अने प्रबोधचंद्रोदयनां द्रष्टांतो सहित उपर जे लखवामां आव्युं छे, ते मतनुं नारायणभट्टीना अभिप्रायथी खंडन थायछे. एटले एवा प्रकारनो उपजाति करवी योग्य नथी, एम अभिप्राय जणावेछे ले उचित छे.
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