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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३०२ रणपिंगळ. समवृत्त. ६९७ परिलेख', धारी. ज,ज,ज,य. ८७८ जजाज य आण सदा परिलेखे. १ जेबे वृत्तना घणु करीनै पेहेला अक्षर गुरु अथवा लघु होय, अने बाकीना अक्षर विशेषे करीने सरखा होय तो तेवां बे वृत्तना मिश्रणथी उपजाति वृत्त बनेछे जेमके-माया (अं. ६९६) अने परिलेख (अं. ६९७)एबेवृत्तमा पेहेलानो प्रथम अक्षर गुरु छे, अने बोजानो प्रथम अक्षर लघु छे, अने बाकीना बंने वृत्तना बधा अक्षर एक सरखाछे, तो ए बे वृत्तना मिश्रणथी उपजाति थायछे. तेवीज रीते, धृष्टपद(अं.७०३)अने दृतपदना (अं.७० ४) मिश्रणथी पण उपजाति थायछे, अने ते प्रत्येक चौद चौद थायछे. विषमपदना प्रकरणमा असंकीर्णना पेटामां कहेलां वृत्त उपजाति गणायः तेमन विषमाक्षरपादवाळां वृत्तोनुं मिश्रण थवाथी पण उपजाति थायछे. नेमके, (अं.७२८) वंशस्थना अक्षर बार छे, अने उपेन्द्रवज्राना(अं.५७१) अक्षर ११ छे, तो पण ते बेनुं मिश्रण थवाथी उपजाति थायछे, तेनुं उदाहरण, वाल्मीकी रामायणना सुन्दर काण्डमां नीचे प्रमाणे छे:नमोऽस्तु वाचस्पतये सचक्रिणे, १२ वंशस्थy. स्वयम्भुवे चापि हुताशनाय; ११ उपेन्द्रवज्रानुं. अनेन चोक्तं यदिदं ममाग्रतो, १२ वंशस्थy. वनौकसां तच्च तथास्तु नान्यथा. १२ वंशस्थy. वळी इन्द्रवंशा, उपेन्द्रवज्रा, अने वंशस्थ ए वणना मिश्रण थकी उपजाति थायछे, तेनुं उदाहरण भागवतना १० स्कंधमां नीचे प्रमाणे छे. (भागवत स्कंध १० पूर्वार्द्ध अध्याय १२ मो श्लोक २६) For Private And Personal Use Only
SR No.020597
Book TitleRanpingal Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRanchodbhai Udayram
PublisherKutchh Darbari Mudrayantra
Publication Year1902
Total Pages723
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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