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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra रस देश गणनाम मगण दिशा पूर्वं वाहन काचो मोर, मगर मेंढो तुरगं बलद नेत्र ऋषि www.kobatirth.org प्रवेशक.. यगण रगण संगण तगण जगणं भगण नगण ईशान उत्तर वायव्य पश्चिम नैर्ऋत्य दक्षिण अभि हरण ससलो हाथी, उंट ३ ३ २२ श्रृंगार करुण रौद्र वीर शान्त १ दास U ~ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मगध मेरुगिरि उज्जन कलिं उज्जन सोरठ कालि जर नदीनी कश्यप आत्रेय अंगा- गौतम वशिष्ट कोशिक अंगीरा रैंक ३७ १ ३ ३ भया" हास्य नवरसमां नेक अभंग For Private And Personal Use Only मागध स्थान शीर्ष नेत्र कंठ उर हृदय पेट नाभी गुह्यस्थान इच्छित भोग तान्दुल मिठाइ लूनी जळ दाडम मसूर हरडे शस्त्र चक्र त्रिशूल बाण पर्वत बाणपीळु गुडंज फरसी मित्रामित्र मित्र खङ्ग शत्रु शत्रु उदासीन उद. सी. भृत्य मित्र शुभाशुभ। शुभ शुभ अशुभ अशुभ अशुभ अशुभ शुभ विशेष. कोइ छंदोग्रंथमां म य भ न गणना ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य अने शूद ए क्रमे वर्णं कहेला छे; अने शुक्ल, पीत, स्फटिक भृगु शुभ ० पृष्ठ ३६ ना कोठामां गणनी माता अने पितामा आसनमा ज्यां • शून्यमूक्युं छे त्यां एम समजवानुं छे के; जे गणनुं ए आसन छे गणनां मात पितानां नाम कोइ प्रथम अमारा जीवामां आव्यां नथी तेम छतां नाम छपाइ गयां छे ते खरां नथी ४
SR No.020597
Book TitleRanpingal Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRanchodbhai Udayram
PublisherKutchh Darbari Mudrayantra
Publication Year1902
Total Pages723
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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