SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 401
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रणपिंगळ. १६. उद्गलितक. ६++४+ज+४+ज+४=३० मात्रा. त्रीजी मात्राए, पछी चच्चारे चडता ताल. छ कल उपर पयोधर धरी ड ते पर करी फरी पयोधर, ते उपर कल चार ने ज ड वळी धरो ते परे कवीश्वरः एम छ कल परे ज ड त्रण करतां कल त्रीश कुल थाय सरखी, उद्गलितक करो गणतरी करी मनविषे सदाय हरखी. २५० छंदोलतामां ड+ड+s+s+ग=१८ मात्रा करवा केहेछे, पण छंदःशास्त्र अने वृत्तमौक्तिकमां अमे उपर बताव्युं ते प्रमाणे माप छे. मुग्धमालागलितक करतां आमां बे चोकलिया ओछा. छे. १७ मुग्धमालागलितक. ६+ज+४+ज+४+ज+४+न+४=३८ १,५,७,११,१५,१९,२३,२७,३१,३५ मात्राए ताल, श्रीश आहे, न मुग्धमाला विषे कला कुल समायछे ने रचाय सारी, विगत करो, कला छ प्रथमे धरी तमे चार वार ज ड गण पदे उचारी; मन दृढथी, सदाय हरिगुण गवाय नित्ये भमाय नहि तो जणाय रूई, माटे तुं, खमाय तेवी खमी पीडा पण प्रभु भजन कर तनीज कूटुं.२५१ बरोबर रागथी गवाय माटे पेहेली छ मात्रा पूरी थनां वे मात्रा वोलाय एटलो राग लंबाववो, अर्थात त्यां विराम लेवो. For Private And Personal Use Only
SR No.020597
Book TitleRanpingal Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRanchodbhai Udayram
PublisherKutchh Darbari Mudrayantra
Publication Year1902
Total Pages723
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy