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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गलितक. मात्रामेळ. २२३ गुरु ते उपर; पच्चिश कुल कल विपरित समगलितके थायछे, समे ड ढ धर. बीजा समगलितकथी आ उलटुं छे. २४७ १४ विक्षिप्तिकगलितक. ५+४+६+४+५+ग-२५ मात्रा. १,५,९,१४,१८,२२ मात्राए ताल. ठड पर ठड धर उपर शर, कल गुरु चरमे* करवो, विक्षिप्तिकगलितक चरण, कविवर करशे गरवो; पच्चिश कुल कल प्रतिपदे, गणीने विगते धरवी, तेर प्रथम कल धरि दुहे, रवि कल पछी उच रवो. २४८ *अते. आ गलितकमा प्रथम तेर कलनी दुहानी रचना अने ताल पण ते प्रमाणे, बाकीनी बार कलना प्रारंभने प्रथम अक्षरे ताल, पछी चच्चार चडते आवेछे. वृत्तमौक्तिकमां विक्षिप्तिका नाम आप्यु छे. १५ मुग्धगलितक. ६ डगण (४+ज+४+ज+४+ज)+ग-२६ मात्रा. १,५,९,१३,१७,२१,२५ मात्राए ताल, ड ज चार वार आणी गुरु धरो चरममां फरी, ए रीतिथी कला कुल करो वौशपर पट आदरी; मुग्धज गलितक चरण रचीज ज्यम रागमां गमे, ईश्वर कथा कथो आ गलितक विपे नमी तमे. २४९ ४ . For Private And Personal Use Only
SR No.020597
Book TitleRanpingal Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRanchodbhai Udayram
PublisherKutchh Darbari Mudrayantra
Publication Year1902
Total Pages723
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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