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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विषमजासि मात्रामेळ गुरु तेमां करवो, छेलो धरवो, छंद उचरवो, लोभावी, उल्लास वखाणुं, सो ने बाणु, कुल कल आणुं, शोभावी. २१० विषमपद जाति. गणप्रस्तारप्रकाशमां विषमपद छंद (जाति)नी रचना एम जणावी छे के, चोवीश मात्राथी प्रारंभ करीने इच्छापूर्वक मात्राना आवा छंद बनी शके छे. तेमां जेटली मात्राना छंद रचवा होय तेना अर्द्ध विरामनी मात्रानो एक टेक बांधवो, अने पांच चरणनो एक छंद पूरो गणी अन्ते पालो तेनो तेज टेक मूकवो. तथा पांचे चरणना अथवा तेम न बनी शके तो बब्बे चरणना अनुप्रास टेकना अनुप्रास साथे मेळववाः-- ३३ चोवीश मात्रानी विषमपद जाति. (घj करीने) १४+१=२४ मात्राना पांच चरण. ४+३+४+३=१४ मात्रानो टेक १, ५, ८, १२मात्राए ताल. ३+४+३+४=१४ मात्रा तेमां १, ४, ८, ११मात्राए ताल. अने ३+४+३=१० मात्रा तेमां १, ४, ८, मात्राए ताल, ३+४+३+४, ३+४+३=२४ मात्रानां पांच चरण. प्रथमे टेक एकज आण--- चौद कलर्नु थाय छे ठिक, ते तपुंज प्रमाण; चौद ने दश एम एमां, विरति जूदी जाण; त्यार पछि चोवीश कलनां, चरण रच तुं वाण; पास पांचे आण मळता, जाण पण न दवाण; विषम पदनो छंद चोवीश, कलतणो सुख खाण. . . प्रथमे टेक एकज आण. २११ For Private And Personal Use Only
SR No.020597
Book TitleRanpingal Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRanchodbhai Udayram
PublisherKutchh Darbari Mudrayantra
Publication Year1902
Total Pages723
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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