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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra 看待我 www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रणपिंगळ. ३. एवी रीतें काव्य, एक बदलीने आणो; ४. अगियारे यति जरुर, तेर पर पछीची जाणी; ५. त्रण चोक लिया पर त्रण कली, छ चार पछी ऋण कल करो; ६. ए रीति उलालों एक करों, यति पंदर तेरे घरो. १८७ जे षट्पदीमां ४८ लघु होय ते विप्राजाति, तेनुं फळ सिद्धि छे; ७१ लघुवाळी क्षत्रिया केहेवाय, तेनुं फळ वृत्ति ( उपजीविका ) छे; ९६ लघुवाळी वैश्या केहेवायछे, तेनुं फळ धन छे; अने तेथी उपरांत लघुवाळी शूद्रा केहेवायछे, तेनुं फळ मरण छे. आ प्रमाणे टिप्पण “ चित्रसेन टीकावाळा मागधी पिंगळमां" दर्शाव्युं छे. वळी एक मतांतर एम छे के, अक वर्गदाळी विप्रा केहेवाय; च ट वर्गवाळी क्षत्रिया केहेवाय; त प वर्गनी वैश्या अने अर्गनी शूद्रा केहेवाय. संस्कृत वृत्तमौक्तिकमां पण ६+१२ (४+४+४ ) +४+२ एवी रीते चोवीश मात्रा लाववा जणावतां केहेछे के, काव्यजातिमां १२ मात्राना चोकलिया त्रण गण लावतां छेलो विप्र (III) अथवा जम (ISI) आणवो जोइए, एम आदेश कर्यो छे ते षट्पदी संबंधमां पाळवानो नथी. षट्पदीना ७१ भेद करवामां प्रथम रूपं १२ लघु अने ७० गुरुनुं अजय नामनुं योज्युं छे, तेनुं कारण एम जणायछे के, ६+१२ (४+४+४) छ कल उपर बार मात्राना त्रण चोकलिया लाववाना छे तेमां त्रीजो चोकलियो सगण ( 115 ) अथवा जगण ( 1st ) लावतां प्रत्येक चरणमां के लघु नियमित आववा जोइये. ए गणत्री प्रमाणे चार पादनी आठ लघु मात्रा थाय, ते उपरांत, उलालानी प्रत्येक यतिमां छेली त्रण त्रण मात्रा आणवानी छे, एटले मां एकेको लघु आवेछे, ए हिसावे बे दलनी चार लघु मात्रा थाय ते (८+४) आठमा उमेरतां प्रथम रूपमा १२ लघु मात्रा आवे छे. For Private And Personal Use Only
SR No.020597
Book TitleRanpingal Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRanchodbhai Udayram
PublisherKutchh Darbari Mudrayantra
Publication Year1902
Total Pages723
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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