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विषमजाति
मात्रामळ. प्राकृत पिंगळसूत्रनी टीकामां पशुपतिना मत प्रमाणे कुंडलियान माप एम लखेछे के, प्रथम दुहो, पछी सोरठी अने ते पछी एक काव्य जाति एम कुल १९२ मात्रा आणवी. __कुंडलियामां दोहराना अन्तनो लाटानुप्रॉस काव्यना प्रारंभमां मूकवो अने काव्यने अन्ते दोहराना प्रारंभनो लाटानुप्रास मूकवो एम छंदोवृत्तमुक्तावलिमां कां छे. ___ नागपिंगळ, प्राकृत पिंगळसूत्र, तथा वृत्तरत्नाकरनी नारायणभट्टी टीकामां २+४+४+४+४+४+२=२४ एम गण आवे त्यारे षट्पदी केहेछे, अने प्रारंभमा छ मात्रा आवे (६+४+४+४+४+२-२४) तेने षट्पदी अथवा वस्तु एवं नाम आपछे.
५ मी अने ६ठी तुक उल्लालानी छे, तेनी प्रथमनी चार मात्रामा श्रीजी मात्राए ताल आणवो एम नियम छे, तेनो अर्थ एटलोज छे के, चार मात्रामाथी प्रारंभनी बे माना छूटी पाडवी; एटले २+२३४ मात्रा आणवी, मतलब के, बीजी अने त्रीजी मात्रा. एकठी आ. णवी नहि.
१८ षट्पदी-छप्पय. मात्रा १६२. . १. ६+१२ (४+४+४) +४+२=२४)
२. +१२ (४+४+४)+४+२=२४/ एक कार्य ३: ६+१२ (४+४+४)+४+२=२४ , ४. ६+१२ (४+४+४)+४+२=२४. ५. ४+४+४+३, ६+४+३ =२८) एक उल्लालो ६. ४+४+४+३, ६+४+३ =२८,१५,१३ यति. १. छप्पय-षट्पदी थाय, कला चोवीश कुल करजो, २. छ कल पर ड गण चार, ते पछी बेकल धरनो;
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