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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रचूर्ण गीति. मात्रामेळ मुख दल गीति बीने, आर्या उत्तर दलपर कल वे छे । बारे बिराम बेमां, प्रगीति तेने कविजन के छे. १४८ संगीति* प० ४+४+४, ४+४+ज अथवा विप्र+४+४=१२+२०=३२ द्वि०४+४+४,४+४+ल+४+४=१२+१७-२९ .. गीतिपर कल के वधु, मुख दलमां ने प्रगीति सम छेलु छे; बारे विरति बधामां, ए लक्षण संगीति केरुं छे. १६६ 'छंदोलतामा संगीति, माप३०-२९ तथा परिगीतिनुं २९-३०दाव्युछे. १४९ ललितागीति, गाहिनी, गाहिणी, गाथिनी. प्र० ४+४+४, ४+४+ज अ० विप्र+४+२= १२+१=३०. द्वि० ४+४+४, ४+४+ज अ० विप्र+४+४=१२+२०=३२.. पथ्या गीति सम सौ, उत्तर दलमां पण कल बे वधती; ललिता गीति गाहिनी, गाथिनींनी पण गणाय एमां गणती.१६७ गाहिनीनी बासठ मात्रा थायछे, पूर्वार्द्धना सात गणना १२,८०० रूप थाय, तेने उत्तरार्द्धना आठ गणनां ५ १,२०० रूपथी गुणतां ६५,५३,६०,००० रूप थायछे. १५० * सिंहिनी, वल्लरीगीति, वल्गुगीति'. प्र० ४+४+४/४+४+ज अविप्र+४+४=१२+२०=३२. द्वि० ४+४+४, ४+४+ज अ०विप्र+४+२=१२+१=३०. गीतिपर कल बे वधु, प्रथम दले यति रवि शिपर तो धरजो; उत्तर दल गीतिसम, वल्लरी सिंहिनि गोति विषे करजो. १६८ * भाषाछंदोमंजरीमा एनुं नाम साहिनी राख्यु छे. तथा छंदो दीपिकामां पण तेज नाम राख्युं छे. १ चित्रसेन कृत टीकावाळा For Private And Personal Use Only
SR No.020597
Book TitleRanpingal Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRanchodbhai Udayram
PublisherKutchh Darbari Mudrayantra
Publication Year1902
Total Pages723
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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