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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गातिना भेद मात्रामैळ. ११३ ___७८ (७) मुखचपला अन्तविपुलागीति. प्रथम दलमां चपलानो नियम, अने द्वितीय दलमा विपुलानी यति. अन्तविपुलानगीति, गणायछे ते मुखचपला सारी; अन्त दले यात विपुलानी, ने मुख दल नि'म चपला धारी. ९६ ७९ (८) मुखचपला उभयविपुलागीति. प्रथम दलमा चपलानो नियम अने वने दलमा विपुलानी यति. द्विदले यति विपुलातणीज, मुखदल निम चपला थाशे; मुखबपला उभय विपुला, गीति तो रचाइ ठिक जाशे ९७ ८० (९) जघनचपलापथ्यागीति. . जघन एटले वीजा दलमा चपलाना नियम अने बेमा पथ्यानी यति. अन्तदले चपला निम, पथ्या गीतितणी विरति धारी; जघनविप्रलल पथ्या, रचाय मीति सदाय ते सारी. ९८ ८१ (१०) जघनचपलाला उपनिपुलागीति. चीजा दलमां चपलाना नियम अने पेहेला दलमा विपुलानी यति. चपला नि'म उत्तर दलमां, यति आदि दल विपुला धरजो; जघन चपलान गीति, विपुलआदि खरेखरी करजो. ९९ ८२ (११) जघनचपलाअन्तविपुलागीति. बीजा दलमा चपला प्रमाणे नियम अने विपुला प्रमाणे यति. जघननचपलागीति, अन्तविपुला सदाय रचवी तो; अन्त दलमांह चपलातणो, नियम ने यति विपुलानी तो. १०० ८३ (१२) जघनचपलाउभयविपुलागीति. वीजा दलमा चपला प्रमाणे नियम अने बन्ने दलमां विपुला प्रमाणे यति जघनचपलाउभयविपुलामां, विपुलातणी विरति द्विदले; अन्त दलमांह चपलातणो, नियम ए गोति विषेन पके. १०१ For Private And Personal Use Only
SR No.020597
Book TitleRanpingal Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRanchodbhai Udayram
PublisherKutchh Darbari Mudrayantra
Publication Year1902
Total Pages723
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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