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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शिखा जात. मात्रामक. मुनि धरि चरम, रा धर धारा; +अन्ते. वसु पछौं वसुपर, मुनिवरना उपर, रसपर विरति, अतिरुचिरा. ५३ (४+४+४+४+४+४+न=२८ मात्रा, पेहेलुं दल, ३९ शिखा. | ४+४+४+४+४+४+४+ज=३२ मात्रानुं बीजें, पेहेला दलमां १, ५, ९, १३, १७, २१, २५ अने बीजा दलमां १,५,९,१३,१७,२१,२५,२९ मात्राए ताल. कविवर! पट चोकल कर प्रथम दले पछी जगण धर एक; बळी जो बीजे सात ड उपर जगणनो शिखाविषे छे विवेक. ५४ वृत्तरत्नाकरनी नारायणभट्टीटीकामां शिखानुं ए.प्रमाणे माप छे. . ४० शिखित. २८ल+१ग-३० मात्रा, प्रत्येक दल, ..१,५,९,१३,१७,२१,२५,२९ मात्राए ताल, शि पर वसु कल कुल कल लघु धर ‘पछौं शशि गुरु धर प्रति दलमां; +टकर प्रथमपर पठौं श्रुति श्रुति चड़ + ताल शिखित तु रच कविवर! पलमा. ४? अशिखा, (२४ ल+१=२८ मात्रा पूर्वार्द्धमा । एकपर चच्चारे नाकि. २८ल+१ ज=३२ मात्रा उत्तरार्द्धमां ) चडता ताल, थोशपर श्रुति कल सकल तु लघु घर उपर जगण कर सदाय; धीशपर वसु कल सकल लघु तु कर उपर जगण घर हुँ अशिख रचाय. ५६ छंदोलमुक्तावली तथा प्राकृतपिंगळसूत्रमा आनुं नाम शिखा के वालवलभमा नाकि नाम आप्युं छे. For Private And Personal Use Only
SR No.020597
Book TitleRanpingal Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRanchodbhai Udayram
PublisherKutchh Darbari Mudrayantra
Publication Year1902
Total Pages723
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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