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राजविद्या। उपदेश का प्रबन्ध करना। पुण्य धर्म और ईश्वर ही आराधना उपासना करना । न्याय मर्यादों के प्रबन्ध को देखना जगत को शुद्ध मार्गपर चलाने के लिये । इमी तरह दुमरे राजावों के साथ कार्य प्रीति और धर्म से प्रति हा शिल्प औषधालय चिकित्सालय शरीरव्यच्छेदालय अनाथालय और वायु जल की शुद्धि प्रजाहित के लिये सब प्रबन्ध । तप पुरुषार्थ परिश्रम सेवा सहायता धर्म रक्षा न्याय दान पुण्य पूजा जप भक्ति मान मोह प्रोति एक्यता इतिहासिक पदादि यशका उत्साह सुन ना चाहिये । दखने मे प्रीय हो । सुगन्ध आदि भोजन शरीर पोषण के लिये शगर ढकने को (ओढने पहरने रक्षा के वास्ते। मारी उपयोगी वस्तुवों सामग्रीयां बनाना बनवाना । जगत उ. पयोगी कार्यालय स्थापित करना । नव उपगी खजाना भरपूर रखना और इन सब का प्रतिफल प्रतिउपकार उदार वित्त से करना चाहिये प्रजा
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