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राजविद्या। बुद्धिरहंकारश्चेति । येन चित्यते संज्ञायते आत्मनोचित्तम् हृदयापरनामकम् । मनस्तु संकल्पविकल्पात्मकम् संदेह स्वरूपम् । निश्चयात्मिका बद्धिः वा ज्ञानेन सत्यं कार्य कर्तब्यम् वा यथा कर्म तथा बद्धिः अतः एवहि बद्धिः कर्मानुसारिणीति । अहामेत्य हंकारोऽभिमानाश्रयति । स्थावर जंगमानां यथा तथ्यव जाननीयम् ज्ञान प्रोच्यते।
भाषार्थ ११ ज्ञान क्या है-ज्ञान के चार अंश है चित्त मन बुद्धि और अहंकार । जिस्से चेत कीया जाय जाना जाय आत्मा से उसे चित्त कहते है । हृदय इसका दुसरा नाम है। मन तो आत्मा का संकल्प विकल्प संदेह सरूप है । आत्मा का निश्चय बुद्धि है वा ज्ञान से सत्य कार्य करना चाहिये वा जैसा
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