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राजविद्या |
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[ ४ ]
कीया जाता है ||
एतद्योगः जगत्सुममूलं कदापिन विनश्यति । मनुष्याणां बुद्धिपुन्यूनाधिकांशतया प्रवर्तते ॥
भाषार्थ
ये योग जगत मे समूल कभी नाश नहीं होता है मनुष्यों की बुद्धियों में कम या जादा अंश से प्रवर्त रहता है ॥
यदा यदा हि एतद्योगस्याधिकता जगत्सत्य युगमेव प्रवर्तते । सुखशान्ति स्थितिश्व संवर्धन्ते ॥
भाषार्थ
जब जब जगत में इस योग की अधिकता होली है तो सत्य युगकी प्रवर्ति रहती है और सुख शान्ति स्थिति की वृद्धि होती है |
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