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राज्ञां धने मानंघ वीर सुनान परोपकारीएगांगुलीनां च सत्कारार्थमेव पुनधरान जनानां स्वपोऽसमर्था नो परिपालनार्थम् प्रजा हिजार्थ धर्मार्थम् पांगर विना प्रजाहितार्थ रक्षान्याय प्रजन्या
धुनमुपार्जन
निस्तान यानियगनि दुर्घटनमा प्रोज उपयोगी
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दुउपयोगी
उपयो
न्यायः जगायेग
> अन्न काम
रक्षका
वस्त्र
नाहार
धन
शरीर वाहनास्त्रश स्त्राणं प्रीतिनेऽन्या को सेना
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गुणागार
विविध वस्तव
मारी
मुक्ताई तेल घृत रसादि शास्त्रास्त्र युद्ध
सामग्री प्राठ
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