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राजविद्या [११५] तत्पर कटिबध ॥ कामालोभ तेन मोह क्रोधादहकार : एतेषां संभावोऽधिकारः समावादाधकमयोग्यता पतन्ति नरक। शुचौ॥
श्रीमत्परम पवित्र सोन पाठ १९ राजावों में अयोग्यता जो राजा धर्म से हीन विद्यासे हीन, अंगसे हीन, वीरतासे हीन,कोढीया, क्रूरकर्मा अधर्म की पालना करने वाला प्रजा की रक्षा करने में असमर्थ, अन्यायकारी, वीरक्षत्रियोंकी, राजवि. द्या जानने वालोंकी, भूमि हरने वाला और ऐसों को न देने वाला गजसिंहासन के योग्य नहीं है ॥ राजविद्या र राजविद्या के तत्व को छोड़ने से राज्य तथा वा जाति भी और जातोंमें मिलकर जड़से चली जाती है और घोर नरक में पड़ते है ।। निराशपन्न और शास्त्रों में श्रद्धाहीनता क्षत्रियों के लिये महाँन अनर्थका चिन्ह है और राज्य से भ्रष्ट होजाने के लक्षण है ये नरक में पड़ने का चिन्ह जानना ॥ बल बुद्धि की मर्यादों से पाया
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