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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [६६] राजविद्या। वस्तुवों की रक्षा रखे ॥ आपस में जगद्धित के लिये सम्मति (सलाह) करे ॥ उपकार का पीछा उपकार करे ॥ दीन जन और गौवों की रक्षा करे ॥ अविद्या और अविद्या के कार्यों को नाश करने वाले संकर भगवान मालिक से प्रसाद (मेहर ) मागे जिस्से आपस का वैर विरोद्ध दिद्धा समाप्त हो ॥ धर्म कार्यों में आपस की सहायता प्राणों तक करनी चाहिये। और अधर्म का काम कुछ भी न करना चाहिये। अपणे बुद्धि बलका भेद दुसरों में प्रकाश न करे ॥ देव ऋषि वा सर्व साधारणों के जल आकाश पाताल और भूमि पर के मार्गों को विणज (ब्योपार) एक राज का प्रजाका दुसरे राज्य की प्रजा के साथ न रोके ॥ किसी एक राजके अपराधी को दुसरा राजा सहायता नदेपरन्त जहां का अपराधी हो उस देश के राजा के मांगने पर उसके हवाले कर दे ॥ श्रीमत्परम पवित्र सोम पाठ १४ पुण्य धर्मेश्वराराधनमुपाशनम् । सर्व For Private And Personal Use Only
SR No.020594
Book TitleRajvidya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbramhachari Yogiraj
PublisherBalbramhachari Yogiraj
Publication Year1930
Total Pages308
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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