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राजविद्या। को है जिससे दोष न देखा जाय॥धार्मिकका सहायक भी धार्मिक ही समजा जाय ॥ इसी तरह अधामिक का पक्ष पाति अधार्मिक ही है। मनसा और
आत्मा की शुद्धि देखना ओर जानना चाहीये न्याय के समय मे ॥ अज्ञान्तासे कीया हुवा वा अज्ञान से कीया हुवा अज्ञान बालकमे वा नशे की हालतमे वा उन्माद हालत मे कीया हुवा अधिक दोष न मानाजाता है ॥ अन्याय से संपदका नाश होता है । एक ही विवाह श्रष्ट है जो धर्म का अधिकार हैं तो दुसरा तीसरा और चाया भी ।। इस्से जादा अधिकार नहीहै। तरुण अवस्था मे बहुकाल से वियोग होजाने से वा स्त्री पुरुष का क्षय होजानसे नियोग वा पुनर्विवाह अपनी जातिमे रुचिके अनुसार अधिकार है ।। अच्छी तरह से वी. चार के साथ जांच की हुइ प्रचलित राजाज्ञा हमेश के लिये मर्यादा कहीजाति है जिस्म प्रजावों में सुख शान्ति संपत्ति बनीरहे । सुख संपदा ही स्थिरता कामूल है ।। जो सुख शान्ति आदि मे किसी तरह
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