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राजविद्या। [८५] ज्याय दशांशं प्रजाहिताथम् । तेन शिल्पविद्या प्रचारानाथालयोषधालय चिकित्सालय शरीर ब्यच्छेदालय वायु जल शुद्धि पुरस्वच्छतादि तथाऽन्ध परवनाथ बालका विधवा स्त्रीणां तथा स्वपाषऽसमथानांच पोषणम् पशु चि कित्सादि परमावश्य कार्या प्रतिष्ठापनम्॥न्यायालयाद्यांधकरणानां वादीनां शुल्क शालादि राज्यायालयानांच स्थापनम् ॥ प्रजानामवश्यक कार्यानुसारे चितम्॥यद्वस्तुनःस्थिरतावश्यकः तया काङक्षिता चेतर्हि सा स्थैर्य मूलेवस्या॥ यंत्रकला कार्याणि वर्णशंकर शूद्रयोहस्ते परं समीक्षा सुपरीक्षित ब्राह्मणाय स्वामी प्रकारण (भावेन) प्रदद्यात् ॥
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