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राजविद्या ।
निः सर्वस्वं च विनश्यन्ति ॥
भाषार्थ
[३१]
पुरुषार्थ के त्यागने प्राणों की हानि है और सर्वस्व नाश कर बैठता है ||
धर्मेण धरायाः स्थैर्यम् धरया च धनस्य ॥ धनेन दाराणाम् ॥ दारैश्च सं ततेः ॥ संतत्या च प्राणानां परम्परा प्राप्तौ जन्मानि स्थितिः ॥
भाषार्थ
धर्म से पृथिवी की स्थिरता है और पृथिवी से धनकी और धन से स्त्रियों की और स्त्रियों से सन्तति की और सन्तति से प्राणों की पीढी दर पीढी जन्म पाने की स्थिति ॥
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