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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra शिस्थानन्यः शिप्रधानला संग्रामेति प्रबल दुष्ठासाध्यान्यादिविद्यमी झाचारीणां महति समाजादिवाएँ धार्मिकाएगा न्यूनतम राना विजय प्राप्यत। मुक्तिविधा प्रकाशयतः पाचवा शे वाक्रमण न करोति ने धार्मिका था।। सन्मुख युद्ध परित्यका वा यथाया मी: संयुक्त वापादित्खन्न ग्रुप स्थानान्यवसंबते समये समझे गुम पारा मुष्णले विविध प्रकार सुनने: रजनी ब्याएंश सर्व दिनिराक्रमाणंचकर एम्बै विना पण बन्धनम् नावेनशन स्वयं-पायजे यांद देव योगादकस्मो कार्य। जगदिताधार्मिकाि नेम् सर्व सरायजाइन जलाहार तेषां शरीरयात्रापि निरुधनम् शत्रु णामागमन पंजिगमन सवे शकुन्याकम्यन्नाबारे नान्यस्थाने हि सर्वेन्शन कृत्वाऽन्यथा रानी पायेन स्वत स्थाने वाशन्यः मुक्ा वाचा राजनियर युद्ध-च करोति विजयरा ज्यलक्ष्मी प्राविचादनित्यः विजय नदामी नाराज लक्ष्मी तमोगरे सदा स्थितः स्था रशिस्थानेयः वानिका www. kobatirth.org जाशन राशिस्थानेन्यं. राशिस्थानेल्य 0227990 हैविधमी दरम्वारीएगां महातसेना" केनोपायेन स्थाने स्था whee Love W Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नादी/स्थातेच्य रक्षिस्थानच्य For Private And Personal Use Only रक्षितस्या राक्षस्थाना विनाशाय दाम् विद्यानित्य
SR No.020594
Book TitleRajvidya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbramhachari Yogiraj
PublisherBalbramhachari Yogiraj
Publication Year1930
Total Pages308
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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