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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवेळा (७४) अष्ट कल्याणी बिखराव । २ बिखरी हुई वस्तुएँ । अशिव-(वि०) १. अमंगलकारी । ३. नित्य व्यवहार की वे वस्तुएँ जिन्हें २. वीभत्स । (न०) अमंगल । काम करने के बाद यथास्थान रखना है। अशिष्ट-(वि०) १. उजड्ड । गंवार । प्रवेळा-(ना०) १. बिलंब । देर । २. अस- २. अभद्र। मय। कुसमय । (क्रि० वि०) शीघ्र। अशुद्ध-(वि०) १ अपवित्र । २. सदोष । झट । बेगो। ३. भूलयुक्त । गलत । खोटी । खोटो। अवेव-/न०) १. अवयव । २. भेद । अशुद्धि-(ना.) १. अपवित्रता । २. भूल । रहस्य । गलती । खोट । अवेस-(क्रि० वि०) अवश्य । जरूर । अशुभ-(वि०) १. अमंगल । २. पाप । (वि०) वेश रहित । (न0) आवेश । __अपराध । ३. खोटो। अवेसास-(न०) अविश्वास । अशेष-(वि०) १. न बचा हुआ। समाप्त। अवै—(सर्व०) १. उसने । २ उन्होंने । २. पूरा । ३. अनंत । अपार । अवोचरण-(न०) पर्दानशीन औरतों के अशोक-(वि०) शोक रहित । (न०) एक प्रोढ़ने या साड़ी के ऊपर प्रोढ़ने का एक प्रति प्रसिद्ध प्राचीन मगध सम्राट । वस्त्र। २. एक प्रसिद्ध मांगलिक वृक्ष । अवोड़ो-दे० प्रौड़ो। अशोच-(न०) १. अपवित्रता। २. वह अव्यक्त-(वि०) १. अप्रकट । २. अगम्य । - अशुद्धि जो परिवार में जनन या मृत्यु पर ३. नहीं कहा हुया । (न०) ईश्वर । मानी जाती है । सूतक । अव्यय-(वि०) १. व्यय रहित । २. विकार अश्रद्धा-(ना०) १. श्रद्धा का अभाव । रहित । अविकारी । ३. सदा एक रूप। २. घृणा । सूग । ३. अनास्था । (न0) सभी लिंगों, वचनों, कारकों अश्र -(न०) आँसू । इत्यादि में अपरिवर्तित रहने वाला अश्रु त-(वि०) नहीं सुना हुा । शब्द । (व्या०) अश्लील-(वि०) १. कामाचार संबंधी । अव्यवस्था-(ना०) कुव्यवस्था । व्यवस्था २. कुत्सित । ३. गंदो । भद्दा । फूहड़ । ___ का अभाव । बदइंतजामी। अश्व-(न०) घोड़ा। अव्यवहारू-(वि०) जो व्यवहार में न आ अश्वमेध-(न0) प्राचीन काल का एक ___ सके । व्यवहार के उपयुक्त नहीं। प्रसिद्ध यज्ञ। अशकुन-(न०) बुरा शकुन । आषाढ-(न०) असाढ़ मास । अशक्त-(वि०) निर्बल ।। अष्ट-(वि०) आठ । (न०) आठ की प्रशक्ति-(ना.) निर्बलता । कमजोरी। संख्या । '' प्रशरण-(वि०) १. निराधार । २. अनाथ। अप्ट कल्याणी-(वि०) १. पाठ श्वेत अशरण-शरण-(वि०) निराधार को शुभ चिन्हों वाला (घोड़ा) । चारों पाँव, __ शरण देने वाला । (न०) ईश्वर। ललाट, छाती, कंधा तथा पूछ जिसके प्रशांत-(वि०) १. बेचैन । २. क्षुब्ध । सफेद हों वह (घोड़ा)। अष्टमंगळी । २. खाने-पीने में पवित्रता-अपवित्रता, अशांति-(न०) १. बेचैनी। २. अस्थिरता। छुआछूत, शुद्धाशुद्ध तथा सफाई . ३. क्षुब्धता। इत्यादि का जहाँ विचार तथा व्यवस्था प्रशिक्षित-(वि०) मनपढ़। न हो । मठ कल्यारपी। For Private and Personal Use Only
SR No.020590
Book TitleRajasthani Hindi Shabdakosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadriprasad Sakariya, Bhupatiram Sakariya
PublisherPanchshil Prakashan
Publication Year1993
Total Pages723
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size12 MB
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